Shringverpur Dham Sampoorn Darshan
श्रृंगवेरपुर धाम
प्रयागराज से लगभग 35 किलोमीटर उत्तर में लखनऊ रोड पर स्थित है श्रृंगवेरपुर धाम। ये वही स्थान है जहाँ श्रीरामचंद्र जी ने सुमंत जी को रथ के साथ वापस भेज दिया था और अपनी राजशी वेश भूषा त्याग कर सन्यासी का वेश धारण कर वनवास की यात्रा प्रारंभ की थी।
श्री रामचरित मानस की कुछ पंक्तियों के साथ इस धाम के बारे में और जानते है।
जासु बियोग बिकल पसु ऐसें। प्रजा मातु पितु जिइहहिं कैसें॥बरबस राम सुमंत्रु पठाए। सुरसरि तीर आपु तब आए॥1॥
भावार्थ जिनके वियोग में पशु इस प्रकार व्याकुल हैं, उनके वियोग में प्रजा, माता और पिता कैसे जीते रहेंगे? श्री रामचन्द्रजी ने जबर्दस्ती सुमंत्र को लौटाया। तब आप गंगाजी के तीर पर आए॥1॥
मागी नाव न केवटु आना। कहइ तुम्हार मरमु मैं जाना॥चरन कमल रज कहुं सबु कहई। मानुष करनि मूरि कछु अहई॥ छुअत सिला भइ नारि सुहाई।
श्रीराम ने केवट से नाव मांगी, पर वह लाता नहीं है। वह कहने लगा- मैंने तुम्हारा मर्म जान लिया। तुम्हारे चरण कमलों की धूल के लिए सब लोग कहते हैं कि वह मनुष्य बना देने वाली कोई जड़ी है। आपके चरण धूल से पत्थर की शिला भी नारी बन जाती है। केवट प्रेमऔर भक्ति में डूब के प्रभु से कहता है कि पहले मैं आपके चरण धोऊंगा तभी आपको नाव में बैठाउँगा। मेरे पास यही नाव है जिससे मैं अपने परिवार का पालन पोषण करता हूँ।
अगर यह नारी बन गयी तो मैं गरीब अपने कुटुम्ब का भरण पोषण कैसे करूँगा।
Shringverpur Dham Sampoorn Darshan
Reviewed by Janhitmejankari Team
on
March 19, 2020
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